श्री लाल शुक्ल जी के बहु चर्चित उपन्यास 'राग दरबारी' में पुरानी पीढ़ी और नयी पीढ़ी के बीच के द्वन्द को बताया गया है वो काफी रोचक है। शहरों का वाद विवाद पुरानी और नयी पीढ़ी को लेकर उजागर हो रहा है। उसके पीछे पुरानी पीढ़ी का यह विश्वास है कि हम बुद्धिमान है और हमारे बुद्धिमान हो चुकने के बाद दुनिया से बुद्धि नाम का तत्त्व ही समाप्त हो गया। नयी पीढ़ी के लिए एक कतरा भी नहीं बचा है।
दूसरी और नयी पीढ़ी कि यह आस्था है कि पुरानी पीढ़ी जड़ है जबकि हम चेतन।
(फोटो- जिसका यहाँ पर कोई औचित्य नहीं है)
आपकी जानकारी के लिए मै इन दो शब्दों का अर्थ स्पष्ट कर दूँ जड़ पदार्थ वे होते हैं जिनमें ज्ञान और प्रयत्न नहीं पाया जाता. जड़ पदार्थ स्थायी होते हैं और उनमें स्वतंत्र क्रियाएं नहीं होतीं. उदाहरण के लिए, पत्थर, मिट्टी, पहाड़ आदि जड़ पदार्थ हैं.
चेतन पदार्थ वे होते हैं जिनमें ज्ञान और प्रयत्न पाया जाता है. इनमें सुख-दुख और इच्छा-द्वेष जैसे संयोग से उत्पन्न गुण भी पाए जाते हैं. चेतना जीवन की पहचान और संचालन करने की क्षमता होती है. ।
अक्सर आपने और हमने यह माना है कि हमसे जो बड़े है वो एकदम स्टेटस क़ुओइस्ट अर्थात यथापूर्व स्थिति में बने रहने वाले है, वो बदवाल से डरते है, जबकि पुराने लोगो ने हमें इसी बात के लिए मुर्ख समझा है कि हम बनी बनाई व्यवस्था को बिगाड़ने पे तुले हुए है। यह बात बहुत आम है कि एक पढ़े लिखे आदमी को कोई सच बोलने पर ताना मिल जाए कि ज्यादा पढ़ लिख लिया है, भले ही उसकी बात सत्य हो, भले उसकी बात तार्किक हो। दूसरी तरफ पुरानी पीढ़ी इस बात कि ना सिर्फ उम्मीद करती है, बल्कि अपना हक़ समझती है कि अगर वो कोई अतार्किक बात भी कर दें, तो नयी पीढ़ी उसको सर झुका कर मान ले।
ये द्वन्द जीवन के बहुत से आयामो में देखा जाता है, जैसे डॉन ब्रॅडमन या सचिन तेंदुलकर को मिलने वाले तमगे आने वाली पीढ़ी के खिलाड़िओ को नहीं मिलेंगे, जैसे हर परीक्षा का अभ्यर्थी अपने से पिछली कक्षा वाले अभ्यर्थी को एक बार जरूर बोलता है कि हमारे टाइम में बहुत मुश्किल था, अब एकदम आसान है। जो बात मैंने बहुत बार सुनी है, वो यह है कि वो लड़का पढ़ा लिखा तो है, पर समझदार नहीं है, हमारे टाइम के पांचवी पास भी इससे ज्यादा जानते थे जितना आज के IIT वाले जानते है।
पुरानी पीढ़ी के चोर चोर होते थे, डाकू डाकू होते थे, उनकी चोरिया ऐतिहासिक महत्व की होती थी। चोरी करने वाले ईमानदारी से चुपचाप चोरी करते थे, मार कुटाई से कोसो दूर रहते थे। डाकू ओमपुरी डाका डालने से पहले शगुन बांचते थे, और चम्बल के बीहड़ वाले डकैत नहीं, बागी होते थे। बीस पच्चीस लोगो को मारा होता था, लेकीन भले आदमी थे वो। आजकल के UPI फ्रॉड तो फर्जीवाड़ा है।
शहरो वाली पुरानी पीढ़ी को पता होता था कि ये प्लाट जो अभी आठ हजार का मिल रहा है, कुछ सालो बाद ढाई करोड़ का हो जाएगा, लेकिन उन्होंने इसलिए नहीं ख़रीदा कि इतने धन का क्या करेंगे। अपरिग्रह का सिद्धांत सर्वोपरि होता था, उसकी पुष्टि आप अक्सर घर की सफाई या खुदाई में मिलने वाले सिक्को से कर सकते है। आजकल की पीढ़ी तो व्यर्थ ही पचीस तीस साल तक पढाई करती रहती है, उनके ज़माने में आठवीं फ़ैल होते ही काम शुरू कर देने का नियम था। इसी का नतीजा है कि लाख दो लाख तो चलते फिरते दान कर सकते है वो, लेकिन पांच सात किताबे आज भी फालतू कि वास्तु लगती है उन्हे।
पुरानी पीढ़ी में वैज्ञानिकता कूट कूट कर भरी थी, आजकल जो आप जर्दा मसलते हुए किसी सज्जन को देखते है तो वो वास्तव में वैज्ञानिकता को कूट कर हजम करने की आदत के शिकार है, न कि जर्दा खाने की। कोरोना के समय एक पुराने वैज्ञानिक ने मुझे बताया कि जो औरतें हमारे समाज में घूँघट निकालती है, वो असल में हमारे पूर्वजो ने उनको ऐसे रोगो से बचाए रखने के लिए ही ईजाद किया था। उस क्षण मुझे यह हार्दिक इच्छा हुई कि इस महान व्यक्ति को एक सतरंगी लहरिया भेंट कर दूँ।
राग दरबारी के ही एक पात्र दुरबीनसिंह पुरानी पीढ़ी की महानता के अभूतपूर्व उदाहरण है । जब गाँधी ने नमक कानून तोडा तब वो IPC की सभी धाराओं को एक एक करके तोड़ने का बुनियादी काम कर रहे थे। पुरानी पीढ़ी दुर्बनीसिंह की तरह दूर का देखती है, भले ही उनकी दूर की नजर साफ़ ना हो। उनकी वैज्ञानिकता ही समाज में स्थापित ऊँच-निच वाले सिस्टम का ताना बाना बनाती है। जैसे आप घोड़ो, गधों और खच्चरों को समान नहीं कह सकते, उसी तरह पंडित रामलाल, ठाकुर रणधीर और गंगू तेली को सामान नहीं कह सकते। ऐसा कह देना, जो की आजकल की पीढ़ी कर रही है, वास्तव में तर्क विरुद्ध है और बनी बनाई परम्पराओ का खिलवाड़ है।
ये पीढ़ीओ के बिच में उभरे हुए तनाव का एक दिनभर मोबाइल में लगे रहने का नतीजा है। खासकर तब जब पुरानी पीढ़ी व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी से अपनी पीएचडी पूरी करने के अंतिम पड़ाव पे हो और नयी पीढ़ी किसी कॉलेज से बस डिग्री कर रही हो। कुछ विषयो पर दोनों पीढ़ीओ में सामंजस्य तब ही बन सकता है, जब या तो नयी पीढ़ी अपनी डिग्री को आग लगा कर कम से कम व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी से डिप्लोमा कर दें, या पुरानी पीढ़ी व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी से अपनी अर्जी वापस लेकर दो चार किताबे भी पढ़ लें।
चूँकि दोनों ही स्थितियां जटिल जान पड़ती है, इसलिए हम इस तनाव का सामना करते रहेंगे।
अगर आप मुझसे छोटे है तो ज्ञान ना दें, क्योकि ज्ञान बनने की क्रिया वैज्ञानिको ने मुझे बताने के बाद बंद कर दी थी। आपको जो मिला है वो सिर्फ वहम है, और आपने खुद से कुछ सिख लिया है, ये आपका अहम् है।
अगर आप मुझसे बड़े है तो भी ज्ञान ना दें, आप जड़ हो चुके है, आप नहीं समझेंगे कि अतार्किक बात करके भी तर्क को रखा जा सकता है । आप बस थोड़ा इल्लॉजिकल सोच कर तो देखिये।
और यदि आप दोनों ही स्थितियों के परे है, ना जड़ है, ना चेतन है, तो निश्चित ही आप एक अवतार है।
- D Ram